राष्ट्र पुनरुत्थान की ओर एक और सशक्त कदम
संघ की परंपरा में केवल ईंट और गारे से भवन नहीं बनते, यहाँ संकल्पों की नींव पर राष्ट्रनिर्माण की गगनचुंबी इमारत खड़ी की जाती है। आज, जब हम केशव कुंज के नवनिर्मित भवन का प्रवेशोत्सव मना रहे हैं, तब यह केवल एक भवन का लोकार्पण नहीं, बल्कि हिंदू समाज की आत्मनिर्भरता, संगठन शक्ति और राष्ट्र समर्पण की भावना का उद्घोष है।राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने इस अवसर पर जब कहा कि – “जितना भव्य भवन, उतना ही भव्य कार्य खड़ा करना है,” तो यह एक दिशा-बोध था, एक संकल्प था कि यह भवन केवल भौतिक संरचना नहीं, बल्कि हमारे राष्ट्रनिर्माण के अभियान का सशक्त आधार बनेगा।
संघ – सेवा, समर्पण और संगठन की परंपरा:
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कार्य सैकड़ों वर्षों की गुलामी के कारण दब गई भारतीय संस्कृति और चेतना को पुनर्जागृत करने का अभियान है। संघ ने जब कार्य प्रारंभ किया था, तब परिस्थितियाँ विपरीत थीं- उपेक्षा, विरोध और दमन के वातावरण में कार्य करना पड़ा। लेकिन संगठन की दृढ़ता और स्वयंसेवकों के समर्पण ने संघ को आज विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन बना दिया है।
दिल्ली का झंडेवालान स्थित ‘केशव कुंज’ केवल एक भवन नहीं, बल्कि संघ के ऐतिहासिक विकास का प्रतीक है। यह वहीं स्थान है, जहाँ से संघ कार्य को नई गति और दिशा मिली। और आज, जब यह भवन अपने नए और भव्य स्वरूप में हमारे सामने है, तो यह संकेत है कि संघ कार्य भी अपनी व्यापकता और प्रभाव में उतना ही भव्य होगा।
केशव कुंज – भव्यता और राष्ट्र समर्पण का प्रतीक:
नव-निर्मित केशव कुंज में तीन प्रमुख टॉवर हैं – साधना, प्रेरणा और अर्चना। ये केवल भवन के नाम नहीं, बल्कि संघ कार्य के तीन मूल स्तंभ हैं।
साधना – स्वयंसेवकों की साधना ही राष्ट्रनिर्माण की ऊर्जा है।
प्रेरणा – यह भवन आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करेगा कि वे राष्ट्रसेवा के संकल्प के साथ आगे बढ़ें।
अर्चना – यह भवन केवल संघ कार्यालय नहीं, बल्कि भारत माता की आराधना का एक केंद्र बनेगा।
राष्ट्र पुनरुत्थान का स्वप्न – अखंड भारत:
संघ का कार्य केवल शाखाओं में व्यायाम, दंड और घोष तक सीमित नहीं, बल्कि यह भारतीय संस्कृति की पुनर्स्थापना और विश्वगुरु भारत के निर्माण का अभियान है। जब पूज्य सरसंघचालक जी कहते हैं कि – “संघ का कार्य पूरे विश्व तक जाएगा और भारत को पुनः विश्वगुरु के पद पर आसीन करेगा,” तो यह केवल आशा नहीं, बल्कि एक ठोस संकल्प है।
आज, जब हम केशव कुंज जैसे भव्य भवन का लोकार्पण कर रहे हैं, तब हमें यह संकल्प लेना होगा कि –
- हम केवल भवन नहीं, बल्कि हिंदू समाज की चेतना को संगठित करेंगे।
- हम केवल भौतिक उन्नति नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और सांस्कृतिक पुनरुत्थान की दिशा में भी आगे बढ़ेंगे।
- हम ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ की भावना के साथ कार्य करेंगे और भारत को पुनः अखंड बनाएंगे।
संघ के लिए अगली चुनौती – पुरुषार्थ और ध्येयनिष्ठा:
सरसंघचालक जी ने सही कहा कि – “आज संघ की दशा बदली है, लेकिन दिशा नहीं बदलनी चाहिए।” अनुकूल परिस्थितियों में हमें और अधिक सतर्क रहना होगा। हमें अपने पुरुषार्थ को और बढ़ाना होगा, समाज को और जागरूक करना होगा, राष्ट्रसेवा के क्षेत्र में और अधिक कार्य करना होगा।
“कल हम सबने राष्ट्रनायक छत्रपति शिवाजी महाराज की जयंती श्रद्धा और सम्मान के साथ मनाई। लेकिन केवल एक दिन उनकी जयंती मनाना पर्याप्त नहीं है, हमें उनके विचारों और आदर्शों को अपने जीवन में उतारना होगा। शिवाजी महाराज ने केवल युद्ध नहीं लड़े, बल्कि एक सशक्त, स्वाभिमानी और स्वराज्य की भावना से ओतप्रोत राष्ट्र की नींव रखी। उनके मावले अडिग थे, अजेय थे, अटल थे- और हमें भी उन्हीं के पदचिह्नों पर चलते हुए राष्ट्रनिर्माण के संकल्प को और अधिक सशक्त बनाना है। जयंती बीत सकती है, लेकिन उनकी प्रेरणा अमर है- आइए, इसे अपने कार्यों से जीवंत बनाएँ!”
समर्पित सेवा – राष्ट्र के लिए निःस्वार्थ योगदान:
केशव कुंज न केवल एक कार्यालय है, बल्कि यह राष्ट्रसेवा के अनेक आयामों को समेटे हुए है –
150 किलोवाट सोलर प्लांट और एसटीपी प्लांट – पर्यावरण संरक्षण में योगदान।
हमारी भूमिका – भारत को विश्वगुरु बनाने का संकल्प:
साहित्य भंडार और सुरुचि प्रकाशन – जो भारतीय विचारधारा को समाज तक पहुँचाने का कार्य करेगा।
केशव पुस्तकालय – जहाँ से राष्ट्रभाव जागरण का कार्य होगा।
ओपीडी चिकित्सालय – समाज सेवा का जीवंत उदाहरण।
“केशव कुंज प्रवेशोत्सव का यह शुभ अवसर अब हमारे स्मरण में एक प्रेरणा बनकर रहेगा। लेकिन यह केवल एक आयोजन तक सीमित नहीं रहना चाहिए- अब हमें इसके पीछे के संदेश को अपने जीवन और कार्यों में उतारना होगा।
यह भव्य भवन केवल ईंट-पत्थर की संरचना नहीं, बल्कि राष्ट्र सेवा, संगठन और संस्कार का प्रतीक है। अब हमारी जिम्मेदारी है कि हम इस भवन की भव्यता के अनुरूप अपने कार्य को और अधिक व्यापक और प्रभावशाली बनाएँ। संघ कार्य के सतत विस्तार, समाज सेवा और राष्ट्र पुनरुत्थान की दिशा में हम सभी को अपने पुरुषार्थ को नई गति देनी होगी।
प्रवेशोत्सव बीत गया, लेकिन इसके द्वारा मिला संदेश और संकल्प चिरस्थायी रहना चाहिए- आइए, इसी भावना के साथ आगे बढ़ें!”
- संघ के हर स्वयंसेवक को अपने कार्य को विस्तार देना होगा।
- समाज में सामर्थ्य, शुचिता और संगठन को और अधिक सशक्त बनाना होगा।
- ‘अखंड भारत’ की संकल्पना को केवल विचार तक सीमित नहीं रखना, बल्कि उसे साकार करने के लिए पुरुषार्थ करना होगा।
संपूर्ण विश्व को दिशा देगा केशव कुंज:
केशव कुंज केवल दिल्ली तक सीमित नहीं रहेगा, यह एक विचारधारा को जन्म देगा, जो भारत को पुनः उसकी खोई हुई गौरवशाली स्थिति में स्थापित करेगा। जब संघ के स्वयंसेवक इस भवन की ओर देखेंगे, तो उन्हें केवल ईंट-पत्थर नहीं दिखेंगे, बल्कि उनके भीतर राष्ट्रनिर्माण की अग्नि और अधिक प्रज्वलित होगी।
यह केवल केशव कुंज का लोकार्पण नहीं, यह भारत को पुनः विश्वगुरु बनाने की दिशा में बढ़ाया गया एक महत्वपूर्ण कदम है।
“यह केवल एक प्रवेशोत्सव नहीं, यह राष्ट्र जागरण का शंखनाद है!
यह वह क्षण है जब परिश्रम, संकल्प और राष्ट्रभक्ति की ईंटों से निर्मित केशव कुंज का द्वार खुल रहा है-लेकिन यह केवल एक भवन का उद्घाटन नहीं, बल्कि एक युग की शुरुआत है।
यह वह क्षण है जब हमें भव्यता में नहीं, उसके पीछे छिपी राष्ट्र पुनरुत्थान की भावना में अपनी आस्था जगानी है। यह वह क्षण है जब केवल ईंट-पत्थरों की नहीं, बल्कि एक सशक्त, आत्मनिर्भर और जागृत भारत की आधारशिला रखी जा रही है।
संघ का प्रत्येक स्वयंसेवक इस पवित्र भूमि के ध्येय पथ का रक्षक है, और यह भवन उसी संकल्प की दृढ़ता का प्रतीक है। आज हम केवल एक इमारत का उद्घाटन नहीं कर रहे, हम भारत को पुनः विश्वगुरु बनाने की दिशा में एक नया इतिहास लिख रहे हैं।
आइए, इस पर्व को केवल उत्सव तक सीमित न रखें- इसे अपने जीवन का संकल्प बनाएँ।
“भव्य भवन, भव्य संकल्प—चलो राष्ट्र को परम वैभव तक पहुँचाएँ!”