दिनांक 24 मार्च सोमवार को झाबुआ नगर धर्ममय रहा । प्रसंग था ,थादला निवासी श्री ललित भंसाली जो की ,थादला के प्रसिद्ध स्वर्ण व्यसायी हे, जो की अपना सांसारिक जीवन को त्याग कर 30 अप्रैल को थादला में जैन भगवती दीक्षा ग्रहण प्रवर्तकश्री पूज्य जिनेंद्रमुनि जी के सानिध्य में करने जा रहे हे, का वर्षीदान वरघोड़ा का झाबुआ में आयोजन का एव झाबुआ के सकल जैन समाज द्वारा उनका बहुमान करने का । सबसे पहले सोमवार को सुबह झाबुआ के श्री राजेन्द्र राकेश मेहता परिवार द्वारा नवकारसी का आयोजन हुआ । सुबह 8/30 पर मुमुक्षु श्री ललित भंसाली थादला से झाबुआ अपने परिवार जन के साथ राकेश राजेन्द्र मेहता निवास पर पहुचे । श्री ऋषभदेव बावनजिनालय परिसर से उनकी वर्षीदान यात्रा प्रारम्भ हुई । सुसज्जित रथ में मुमुक्षु श्री ललित भंसाली बैठे थे साथ में उनकी धर्मपत्नी श्रीमती संध्या भंसाली विराजित थी । वर्षीदान यात्रा में साध्वीश्री रत्नरेखा श्री जी एव साध्वी मंडल ने निश्रा प्रदान की । जगह जगह श्री भंसाली का शाल,श्रीफल, माला, तिलक से बहुमान किया गया ।स्थानक समाज ने भी बहुमान किया ।इसके पश्चात वर्षी दान यात्रा जिनालय पहुंची ।यहाँ बहुमान समारोह श्री राजेन्द्रसूरी पोषधशाला के प्रवचन हाल में हुआ ।सर्व प्रथम साध्वी श्री रत्न रेखा श्री जी का उद्बोधन हुआ । उन्होंने इस अवसर पर कहा की “ग्रहस्थ जीवन त्याग कर सयम जीवन अपनाना किसी तलवार की धार पर चलने से कम नहीं हे। उन्होंने कहाँ की संसार के भौतिक साधनों में जो सुख प्राप्त होता हे वह अस्थाई होता हे जबकि स्थाई सुख सयम जीवन में ही होता हे ।इसके पश्चात मनोहर भंडारी, प्रदीप रूनवाल, रीना जैन,पूर्वा कोठारी , राजपाल मूनत सीमा मेहता , आदि ने विचार व्यक्त किए ।””””इस अवसर पर मुमुक्षु ललित भंसाली ने अपने उद्बोधन में दीक्षा की भावना कैसे हुई? इस पर विस्तृत चर्चा करते हुए बताया की वे थादला में वर्ष 2012 के पूज्य महासती मधुबाला जी के प्रवचनों से प्रभावित हुए और वैराग्य ग्रहण के विचार उत्पन्न हो गए थे । इसके पश्चात 2020 में पूज्य जिनेन्द्र मुनि जी का चातुर्मास थादला में हुआ उस समय पूर्ण तया उनके सानिध्य में शास्त्रों का अध्ययन किया ।उस समय मैंने मन ही मन दीक्षा ग्रहण करने की सोच ली थी । किंतु जब घर पर मैंने माताजी और धर्म पत्नी से दीक्षा ग्रहण की इच्छा जाहिर की तो घर में हाहाकार मच गया था । घर पर स्पष्ट मना किया गया । परंतु मैंने दीक्षा ग्रहण करने के भाव और प्रबल किए तब घर की और से परिवार की और माताजी और धर्मपत्नी की अब 2025 में अनुमति मिली और दीक्षा की और अग्रसर हुआ । आपने बताया की जैन संत का जीवन अत्यंत कठिन होता जरूर हे किंतु मनुष्य भव की सफलता दीक्षा ग्रहण करने में ही हे ।में मेरे परिवारजान, माताश्री और धर्म पत्नी का आभारी हूँ मुझे सयम पथ की और अग्रसर होने में मदद की । डा प्रदीप संघवी ने बताया की श्री भंसाली अभी भी साधु जैसा जीवन व्यतीत कर रहे हे ।मात्र कुछ घंटों के लिए ही घर आते थे अधिकतर समय स्थानक में धर्म क्रिया करने में ही गुजार रहे हे ।””””””इसके पश्चात विभिन्न संस्थाओं ने मुमुक्षु श्री भंसाली का , माताश्री ताराबाई का और धर्मपत्नी श्रीमती संध्या भंसाली का बहुमान कर अभिनंदन पत्र भेट किया ।कार्यक्रम संचालन संजय मेहता ने किया ।इस अवसर पर परिवारजन की और से भरत भंसाली ने 30 अप्रेल को थादला दीक्षा महोत्सव में आने का निमंत्रण दिया । आभार कार्यक्रम आयोजक राकेश मेहता ने किया ।फोटो उसी अवसर का ।
