June 23, 2025 5:39 am

भारतीय ग्रामीण पत्रकार संघ ट्रस्ट

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ई जिनगी येही लेखा चलत रहीं

 

रचना – अनमोल कुमार

केहु साथ दी , केहु छलत रहीं.
केहु खुश होई केहु जलत रहीं.
ई ज़िनगी येही लेखा चलत रहीं.

दुख – सुख तऽ जात आवत रही
कबो हँसाइ त कबो रूलावत रही
क़बो दिन चढ़ी, कबो ढलत रही
ई ज़िनगी येही लेखा चलत रहीं

जे आपन बा उहो पराया होई
बहुत कुछ जिनगी में नया होई
केहु धधाई केहूं हाथ मलत रहीं
ई ज़िनगी येही लेखा चलत रहीं

अनहरियाँ बा त अजोरों होई
ये रतिया एक दिन भोरों होई
केहु सोहाई केहु आँख में हलत रही
ई ज़िनगी येही लेखा चलत रहीं

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